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Punjab news: सुप्रीम कोर्ट की उच्च-स्तरीय समिति, क्या पंजाब और हरियाणा ही भुगतेंगे किसानों के मुद्दों का खर्च?

Punjab news: किसानों के मुद्दों, खासकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अन्य समस्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट की उच्च-स्तरीय समिति ने सभी संबंधित पक्षों से बातचीत शुरू कर दी है। यह समिति किसानों के मुद्दों की गहरी जांच कर रही है और सुप्रीम कोर्ट को इस पर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का कार्य कर रही है। हालांकि, इस प्रक्रिया के बीच एक विवाद उठ खड़ा हुआ है। समिति ने अपनी कार्यवाही के लिए पंजाब और हरियाणा सरकारों से 5 करोड़ रुपये की राशि की मांग की है। इस रकम में से हरियाणा सरकार ने अपनी हिस्सेदारी 2.5 करोड़ रुपये चुका दी है, लेकिन पंजाब ने अभी तक अपनी हिस्सेदारी नहीं जमा की है।

इस लेख में हम इस विवाद और इसके पीछे की परिस्थितियों पर चर्चा करेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि आखिर क्यों सिर्फ पंजाब और हरियाणा को इस व्यय का जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और क्या यह उचित है?

सुप्रीम कोर्ट की समिति और उसका उद्देश्य

सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के फरवरी महीने से जारी किसानों के आंदोलन के बाद, जो MSP के कानूनी गारंटी की मांग कर रहे थे, एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया। इस समिति की अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह कर रहे हैं। इस समिति में पंजाब और हरियाणा से कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों को शामिल किया गया है, जो किसानों के मुद्दों को गहराई से समझने और हल करने की दिशा में काम कर रहे हैं।

Punjab news: सुप्रीम कोर्ट की उच्च-स्तरीय समिति, क्या पंजाब और हरियाणा ही भुगतेंगे किसानों के मुद्दों का खर्च?

समिति के प्रमुख सदस्य हैं:

  • पूर्व डीजीपी बीएस संधू
  • कृषि नीति विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा
  • कृषि आर्थिक नीति विशेषज्ञ डॉ. रणजीत सिंह घुमान
  • पंजाब किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ. सुखपाल सिंह
  • हिसार कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (विशेष आमंत्रित सदस्य)

यह समिति न केवल पंजाब और हरियाणा में किसानों से मिल रही है, बल्कि समय-समय पर विभिन्न स्थानों जैसे कि किसान भवन, हरियाणा निवास, और पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट रेस्ट हाउस में भी बैठकें आयोजित कर रही है।

पंजाब और हरियाणा से 5 करोड़ रुपये की मांग

समिति के कार्यों के लिए, पंजाब और हरियाणा सरकारों से 5 करोड़ रुपये की राशि मांगी गई थी। इनमें से हरियाणा सरकार ने अपनी हिस्सेदारी 2.5 करोड़ रुपये जमा कर दी है, लेकिन पंजाब सरकार ने अभी तक अपनी हिस्सेदारी नहीं दी है। कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय उच्च स्तर पर लिया जाना है और इसलिए यह फाइल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के पास भेजी गई है। मुख्यमंत्री को इस पर निर्णय लेना है।

यह मुद्दा किसानों के आंदोलन और MSP के कानूनी गारंटी की मांग से जुड़ा हुआ है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की समिति काम कर रही है। समिति ने अब तक विभिन्न विशेषज्ञों और संगठनों से मुलाकात की है और किसानों के मुद्दों को उठाने के साथ-साथ इस पर रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत की है।

क्या केवल पंजाब और हरियाणा सरकारों को यह बोझ उठाना चाहिए?

इस मुद्दे पर एक और सवाल उठता है, और वह है कि जब देशभर में कृषि सुधारों की दिशा में काम हो रहा है, तो सिर्फ पंजाब और हरियाणा सरकारों से ही क्यों यह धनराशि मांगी जा रही है? क्या केंद्र सरकार को इस व्यय का कुछ हिस्सा नहीं उठाना चाहिए?

किसान संगठन और कुछ सरकारी अधिकारी यह सवाल उठा रहे हैं कि जब यह कृषि सुधारों का काम पूरे देश के लिए हो रहा है, तो केवल पंजाब और हरियाणा पर यह बोझ क्यों डाला जा रहा है? क्या यह उचित है कि इन दोनों राज्यों को अकेले इस समिति के संचालन के लिए राशि देने का दबाव बनाया जाए?

कुछ अधिकारियों का यह भी मानना है कि केंद्र सरकार को इसमें हिस्सेदारी करनी चाहिए, क्योंकि कृषि सुधारों का फायदा सिर्फ इन दो राज्यों तक सीमित नहीं रहेगा। यह सुधार पूरे देश में लागू होंगे और सभी राज्यों के किसानों को इसका लाभ मिलेगा। इसलिए केंद्र सरकार को भी इस प्रक्रिया के खर्च में योगदान देना चाहिए, ताकि यह बोझ पंजाब और हरियाणा पर न डाला जाए।

क्या यह एक और सरकारी नीति की असफलता है?

किसानों की समस्याओं को लेकर उच्च-स्तरीय समिति का गठन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसमें राज्य सरकारों से धन की मांग और इसके विवाद को देखकर यह सवाल उठता है कि क्या यह सरकार की नीति में एक और असफलता का प्रतीक नहीं है? जब सरकारें किसानों के मुद्दों का समाधान ढूंढने के लिए इतनी बड़ी समितियां बनाती हैं, तो क्या यह उचित नहीं होगा कि इसके संचालन के लिए एक ठोस और स्पष्ट नीति बनाई जाए, जिसमें सभी संबंधित पक्षों से सहयोग लिया जाए?

इस मुद्दे के समाधान के लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर काम करना होगा। अगर कृषि सुधार पूरे देश के लिए हैं, तो इसके लिए केवल कुछ राज्यों से धनराशि की मांग नहीं की जानी चाहिए। यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है और इसमें सभी राज्यों को समान रूप से योगदान देना चाहिए।

किसानों के मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की उच्च-स्तरीय समिति का गठन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन पंजाब और हरियाणा से ही यह राशि मांगी जाना सवालों के घेरे में है। यह देखना होगा कि क्या केंद्र सरकार इस पर कोई ठोस कदम उठाती है और क्या पंजाब और हरियाणा सरकारों के बीच इस विवाद का समाधान जल्द ही निकलता है। इसके साथ ही, किसानों के मुद्दों को हल करने की दिशा में यह समिति किस प्रकार की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत करती है, यह भी महत्वपूर्ण होगा।

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